Vishnu Sharma | India
बंदर और मगरमच्छ
एक चालाक बंदर ने मगरमच्छ को चतुराई से हराया, जिसने दोस्ती तोड़कर अपनी पत्नी को खुश करने की सोची।

एक समय की बात है, एक चतुर बंदर नदी के पास एक पेड़ पर रहता था। एक दिन, एक मगरमच्छ नदी में तैरते हुए पेड़ के पास आया और उसने बंदर से कुछ फल मांगे। बंदर दयालु था इसलिए उसने मगरमच्छ को कुछ फल दे दिए।
मगरमच्छ को फल बहुत पसंद आए और वह अगले दिन फिर से फल लेने आया। बंदर ने खुशी से उसे फिर से और फल दिए। धीरे-धीरे, मगरमच्छ हर दिन फल लेने आने लगा और वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए। बंदर मगरमच्छ पर पूरा विश्वास करने लगा।
एक दिन, मगरमच्छ की पत्नी ने फल खाए और उसे वो बहुत पसंद आए। उसे और फल चाहिए थे और उसने मगरमच्छ को इस बारे में बताया। उसकी पत्नी लालची हो गई और उसने मगरमच्छ से बंदर का हृदय खाने की भी इच्छा जताई। मगरमच्छ अपने दोस्त को हानि नहीं पहुँचाना चाहता था, लेकिन उसकी पत्नी ने धमकी दी कि अगर वो बंदर का हृदय नहीं लाएगा, तो वह उसे छोड़ देगी।
मगरमच्छ ने एक योजना बनाई। उसने बंदर से कहा कि उसकी पत्नी ने उसे खाने पर बुलाया है, और पूछा कि क्या वह भी साथ चलना चाहता है। बंदर मगरमच्छ पर भरोसा कर उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गया। वह मगरमच्छ की पीठ पर चढ़ गया और वे नदी पार करने लगे।
जब वे नदी के बीच में पहुँचे, तो मगरमच्छ ने बंदर को अपनी योजना के बारे में बताया। बंदर डर गया, लेकिन वह बहुत चतुर था। उसने मगरमच्छ से कहा कि उसने अपना हृदय पेड़ पर ही छोड़ दिया है, और उन्हें वापस जाकर उसे लेकर आना होगा। मगरमच्छ बंदर की बात पर विश्वास कर वापस नदी किनारे तैरने लगा।
जैसे ही वे किनारे पहुँचे, बंदर तुरंत मगरमच्छ की पीठ से कूदकर पेड़ पर चढ़ गया। मगरमच्छ को आभास हुआ कि उसे चतुराई से मात दी गयी है। फिर बंदर ने कहा कि एक सच्चा मित्र कभी अपने स्वार्थ के लिए दूसरे को हानि नहीं पहुँचाता।
















