Aesop | Greece
कछुआ और खरगोश
धीमा लेकिन लगातार चलने वाला कछुआ, अहंकारी और घमंडी खरगोश को दौड़ में हरा देता है।

एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक तेज़ खरगोश और एक धीमा कछुआ रहता था। खरगोश को अपनी तेज़ दौड़ने की क्षमता पर बहुत गर्व था, और वह अक्सर अन्य जानवरों को इस बारे में बताता था। वह कछुए को उसकी धीमी गति के लिए चिढ़ाता भी था।
एक दिन, कछुआ खरगोश की डींगें सुन-सुनकर थक गया। उसने खरगोश को एक स्पर्धा की चुनौती दी। खरगोश को यह बहुत मजेदार लगा और वह तुरंत मान गया। उन्होंने दौड़ के लिए एक रास्ता चुना, और जंगल के सभी जानवर वह स्पर्धा देखने के लिए इकट्ठा हो गए।
जैसे ही दौड़ शुरू हुई, खरगोश तेज़ी से आगे भागा, और कछुआ पीछे रह गया। कछुए की धीमी चाल देखकर, खरगोश को पक्का विश्वास हो गया कि वह आसानी से जीत जाएगा। उसने सोचा, "मेरे पास तो बहुत समय है, मैं थोड़ा आराम कर सकता हूँ," और वह एक पेड़ के नीचे सो गया।
लेकिन कछुआ धीरे-धीरे और दृढ़ निश्चय से लगातार चलता रहा। उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि खरगोश कितना तेज़ है। उसका ध्यान केवल अंत तक पहुँचने पर केंद्रित था।
जितनी देर खरगोश सो रहा था, उतनी देर में कछुआ धीरे-धीरे लक्ष्य रेखा के पास पहुँच गया। जब तक खरगोश की नींद खुली और उसने देखा कि कछुआ लगभग लक्ष्य तक पहुँच चुका है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह जितनी तेज़ दौड़ सकता था, दौड़ा, लेकिन कछुआ पहले ही स्पर्धा जीत चुका था।
जंगल के सभी जानवर कछुए की जीत पर खुशी से झूम उठे। कछुए ने सिद्ध कर दिया था कि लगातार प्रयास करने और हार न मानने से सफलता मिल ही जाती है।
इसके पूर्व खरगोश ने यह सोचना बंद कर दिया कि वह बाकि सबसे बेहतर है, और उसने दूसरों का उपहास करना भी बंद कर दिया।
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